नई दिल्ली। देश में पहली बार जनगणना के साथ-साथ जातिवार गणना की तैयारी ने सामाजिक न्याय और राजनीतिक समीकरणों की नई बहस छेड़ दी है। माना जा रहा है कि 2025 में होने वाली इस ऐतिहासिक जनगणना के आंकड़ों के बाद ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग) की वर्तमान सूची में व्यापक फेरबदल संभव है। सूत्रों की मानें तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और संघ प्रमुख मोहन भागवत के बीच हुई महत्वपूर्ण बैठक के बाद इस दिशा में हरी झंडी दी गई है।
आंकड़ों के आधार पर सुधार की कवायद
सरकार की मंशा स्पष्ट है-वास्तविक और अद्यतन आंकड़ों के आधार पर ओबीसी सूची को पारदर्शी और न्यायसंगत बनाना। फिलहाल जिस ओबीसी आरक्षण की रूपरेखा है, वह 1931 की जनगणना के आंकड़ों पर आधारित है। यही एकमात्र जातिवार डाटा है जिस पर पिछड़ा वर्ग की आबादी का 52% अनुमान लगाया गया और उसी के आधार पर 27% आरक्षण लागू हुआ। लेकिन सामाजिक परिवर्तन, शैक्षणिक प्रगति और आर्थिक बदलावों ने कई जातियों की स्थिति को बदल दिया है, जिसे अब तक नीति निर्धारण में जगह नहीं मिली।
जातियों की ‘एंट्री और एग्जिट’ का दौर शुरू?
नई जातिवार गणना यह तय करेगी कि कौन सी जातियां अब भी पिछड़ी हैं और कौन सी सामाजिक रूप से आगे बढ़ चुकी हैं। ऐसे में संभव है कि कुछ जातियों को ओबीसी सूची से बाहर कर दिया जाए, जबकि आर्थिक-सामाजिक रूप से पिछड़ी नई जातियों को इसमें शामिल किया जाए। इससे आरक्षण के लाभों का पुनर्वितरण अधिक तार्किक ढंग से किया जा सकेगा।
राजनीति में भूचाल लाने वाली कवायद?
विशेषज्ञों का मानना है कि यह कदम जातिगत गोलबंदी पर आधारित राजनीति को एक गहरी चुनौती देगा। हालांकि जातिवार गणना के पीछे सरकार की मंशा इसे वैज्ञानिक और तर्कसंगत बनाकर आरक्षण प्रणाली को मजबूत करना है, पर इसके राजनीतिक निहितार्थ को भी नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता।
आरएसएस का नजरिया भी अहम
आरएसएस पहले जातिवार गणना को लेकर स्पष्ट नहीं था, लेकिन हाल ही में पलक्कड में हुई समन्वय समिति की बैठक में साफ किया गया कि संगठन इसका विरोध नहीं करता, बशर्ते इसका उपयोग राजनीतिक लाभ के लिए न हो। ऐसे में यह जनगणना देश की सभी जातियों की शैक्षणिक, आर्थिक और सामाजिक स्थिति को दस्तावेज़ीकृत करने का माध्यम बनेगी।
हर दशक में जातिवार गणना का प्रस्ताव
सूत्रों के मुताबिक, सरकार इसे एक स्थायी प्रक्रिया बनाना चाहती है। यानि हर 10 साल में होने वाली जनगणना के साथ-साथ जातिवार गणना भी अनिवार्य होगी। इससे न सिर्फ सामाजिक संरचना का अधिक स्पष्ट चित्र मिलेगा, बल्कि आरक्षण और कल्याणकारी योजनाओं में पारदर्शिता भी आएगी।
क्या सुप्रीम कोर्ट बनेगा अंतिम निर्णायक?
ठोस आंकड़ों के आधार पर यदि सरकार ओबीसी सूची में फेरबदल करती है और इसका विरोध होता है, तो सुप्रीम कोर्ट इसका अंतिम निर्णायक बन सकता है। अभी तक अदालतों में यह तर्क दिया जाता रहा है कि जातियों की वास्तविक स्थिति बताने वाला कोई अद्यतन आंकड़ा मौजूद नहीं है।
जातिवार जनगणना का यह कदम भारतीय सामाजिक संरचना के लिए एक बड़े बदलाव का संकेत है। जहां एक ओर यह सामाजिक न्याय की दिशा में सुधार ला सकता है, वहीं दूसरी ओर इससे नई राजनीतिक खींचतान भी जन्म ले सकती है। आने वाले समय में इस प्रक्रिया के परिणाम देश की सामाजिक और राजनीतिक दिशा तय कर सकते हैं।
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